"हर भारतीय को जानना चाहिए: देश पर कितना कर्ज और क्यों?" 😨

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भारत की अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। लेकिन इस विकास के साथ-साथ देश पर कर्ज का बोझ भी लगातार बढ़ता जा रहा है। सार्वजनिक ऋण या राजकोषीय घाटा किसी भी देश की आर्थिक स्थिति को समझने के लिए महत्वपूर्ण संकेतक हैं। यह लेख भारत के कुल कर्ज, उसके स्रोत, प्रभाव और भविष्य की संभावनाओं पर विस्तृत चर्चा करता है।

भारत पर कितना कर्ज?

भारत पर कुल सरकारी कर्ज (Total Government Debt) का अनुमान नवीनतम आंकड़ों के अनुसार काफी अधिक है, और इसमें आंतरिक कर्ज (Internal Debt) और बाहरी कर्ज (External Debt) दोनों शामिल हैं।

यहां भारत के कर्ज की पूरी जानकारी विस्तार से दी गई है:


भारत का वर्तमान कर्ज: आंकड़ों में 📈

जनवरी 2025 तक उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, भारत का कुल सार्वजनिक कर्ज लगभग 290-300 लाख करोड़ रुपये के आसपास है। यह राशि देश की GDP का लगभग 83-85 प्रतिशत है। यह आंकड़ा केंद्र और राज्य सरकारों के कुल कर्ज को मिलाकर बनता है।

विभाजन:

🔵 केंद्र सरकार का कर्ज : लगभग 180-185 लाख करोड़ रुपये (GDP का लगभग 57-58%)

🔵 राज्य सरकारों का कर्ज : लगभग 75-80 लाख करोड़ रुपये (GDP का लगभग 28-30%)

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह आंकड़े बाहरी और आंतरिक दोनों तरह के कर्ज को शामिल करते हैं।


कर्ज के प्रकार 💹

भारत का सार्वजनिक कर्ज मुख्य रूप से दो श्रेणियों में विभाजित है:

 1. आंतरिक कर्ज (Internal Debt)

यह वह कर्ज है जो भारत सरकार ने देश के भीतर से लिया है। इसमें शामिल हैं:

🔵 सरकारी प्रतिभूतियां (G-Secs) : बैंकों, बीमा कंपनियों और अन्य वित्तीय संस्थानों द्वारा खरीदे गए बांड

🔵 ट्रेजरी बिल : अल्पकालिक उधारी के लिए जारी किए गए

🔵 बचत योजनाएं : PPF, NSC जैसी योजनाओं के माध्यम से

🔵 भविष्य निधि : कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (EPFO) से

आंतरिक कर्ज कुल सार्वजनिक कर्ज का लगभग **95-96%** हिस्सा है।

2. बाहरी कर्ज (External Debt)

यह विदेशी स्रोतों से लिया गया कर्ज है:

🔵 अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं**: विश्व बैंक, IMF, ADB आदि

🔵 विदेशी सरकारें**: द्विपक्षीय ऋण

🔵 विदेशी वाणिज्यिक उधारी : कंपनियों द्वारा लिया गया विदेशी कर्ज

🔵 एन आर आई जमा : अनिवासी भारतीयों की जमा राशियां

भारत का बाहरी कर्ज लगभग **620-650 बिलियन अमेरिकी डॉलर** (लगभग 52-55 लाख करोड़ रुपये) है।


भारत का बाहरी कर्ज – जून 2025
घटक (Component) कुल बाहरी कर्ज में हिस्सा (%)
अमेरिकी डॉलर में कर्ज 53.8%
भारतीय रुपये में कर्ज 31.6%
अन्य मुद्राओं में कर्ज (येन, SDR, यूरो) 14.6%

कर्ज के प्रकार – जून 2025
कर्ज का प्रकार राशि (बिलियन USD)
दीर्घकालिक कर्ज $611.7 बिलियन
अल्पकालिक कर्ज $135.5 बिलियन

कुल बाहरी कर्ज: $747.2 बिलियन
External Debt-to-GDP Ratio: 18.9% (जून 2025 के अंत में)



भारत का कुल सरकारी कर्ज (Total Government Debt) ⌛

Indian flag के साथ economic symbols

भारत का कुल कर्ज, जिसमें केंद्र सरकार और राज्य सरकारों का कर्ज शामिल है, अलग-अलग तरीकों से मापा जाता है।

🔵 सितंबर 2024 तक, भारत के राष्ट्रीय सरकारी कर्ज (National Government Debt) का अनुमान लगभग $2,144.6 बिलियन (या $2.14 ट्रिलियन) था।

🔵 October 2025 के लिए विश्लेषकों का अनुमान है कि भारत का कुल सरकारी कर्ज लगभग ₹181.68 लाख करोड़ (लगभग $2.099 ट्रिलियन) तक पहुंच सकता है।



कर्ज बढ़ने के कारण ❓❓

भारत के सार्वजनिक कर्ज में वृद्धि के कई कारण हैं:

1. राजकोषीय घाटा (Fiscal Deficit)

सरकार की आय (कर और गैर-कर राजस्व) और व्यय के बीच का अंतर राजकोषीय घाटा कहलाता है। जब सरकार का खर्च उसकी आय से ज्यादा होता है, तो इस अंतर को पूरा करने के लिए उधार लेना पड़ता है।

2. कोविड-19 महामारी का प्रभाव

कोविड-19 महामारी का प्रभाव


2020-21 में कोविड-19 महामारी के दौरान सरकार को:

🔵 स्वास्थ्य सेवाओं पर भारी खर्च करना पड़ा

🔵 मुफ्त राशन योजना चलानी पड़ी

🔵 आर्थिक राहत पैकेज देने पड़े

🔵 कर संग्रह में भारी गिरावट आई

इस दौरान कर्ज में तेजी से वृद्धि हुई।

3. विकास कार्यक्रम

बुनियादी ढांचा विकास, सड़क निर्माण, रेलवे आधुनिकीकरण, और अन्य विकास परियोजनाओं के लिए भारी निवेश की आवश्यकता होती है।

4. सब्सिडी और कल्याणकारी योजनाएं

🔵 खाद्य सब्सिडी

🔵 उर्वरक सब्सिडी

🔵 पेट्रोलियम सब्सिडी

🔵 PM-KISAN, आयुष्मान भारत जैसी योजनाएं

5. रक्षा व्यय

सीमा सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए रक्षा पर बजट का बड़ा हिस्सा खर्च होता है।

6. कर चोरी और कम कर संग्रह

भारत में कर-से-GDP अनुपात अन्य विकसित देशों की तुलना में काफी कम है, जिससे सरकार की आय सीमित रहती है।


कर्ज का प्रभाव 🤔

कोविड-19 महामारी का प्रभाव
🔵 सकारात्मक प्रभाव:

1. विकास में निवेश : उधार ली गई राशि का उपयोग बुनियादी ढांचे और विकास परियोजनाओं में किया जाता है, जो दीर्घकालिक आर्थिक विकास को बढ़ावा देती हैं।

2. आर्थिक स्थिरता : संकट के समय कर्ज लेकर सरकार अर्थव्यवस्था को स्थिर रख सकती है।

3. रोजगार सृजन : सरकारी खर्च से रोजगार के अवसर पैदा होते हैं।


🔵 नकारात्मक प्रभाव:

1. ब्याज भुगतान का बोझ : भारत सरकार अपने कुल राजस्व का लगभग **40-45%** केवल कर्ज के ब्याज चुकाने में खर्च करती है। यह अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रों के लिए उपलब्ध संसाधनों को कम करता है।

2. भविष्य की पीढ़ियों पर बोझ : आज का कर्ज भविष्य की पीढ़ियों को चुकाना होगा।

3. क्रेडिट रेटिंग पर असर : अत्यधिक कर्ज से देश की क्रेडिट रेटिंग प्रभावित हो सकती है, जिससे भविष्य में उधार लेना महंगा हो सकता है।

4. मुद्रास्फीति का खतरा : अत्यधिक उधारी से मुद्रास्फीति बढ़ने का खतरा रहता है।

5. निजी निवेश पर दबाव : जब सरकार बड़े पैमाने पर उधार लेती है, तो निजी क्षेत्र के लिए ऋण महंगा हो जाता है (Crowding Out Effect)।


अन्य देशों से तुलना 📈

जब हम भारत के कर्ज की तुलना अन्य देशों से करते हैं, तो एक मिश्रित तस्वीर सामने आती है:

🌏 जापान : GDP का लगभग 260% (सबसे अधिक)

🌏 अमेरिका : GDP का लगभग 130%

🌏 चीन : GDP का लगभग 77%

🌏 ब्रिटेन : GDP का लगभग 100%

🌏 जर्मनी : GDP का लगभग 66%

🌏 भारत : GDP का लगभग 83-85%

भारत की स्थिति उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में ठीक है, लेकिन विकसित देशों की तुलना में चिंताजनक हो सकती है।



सरकार के प्रयास ⭕

भारत सरकार कर्ज को नियंत्रण में रखने के लिए कई कदम उठा रही है:

1. राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम (FRBM)

यह अधिनियम राजकोषीय घाटे को GDP के 3% तक सीमित रखने का लक्ष्य रखता है।

2. विनिवेश (Disinvestment)

सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में सरकारी हिस्सेदारी बेचकर राजस्व बढ़ाना।

3. कर सुधार

🔵 GST का कार्यान्वयन

🔵 कर आधार का विस्तार

🔵 कर चोरी पर नियंत्रण

4. व्यय तर्कसंगतकरण

🔵 सब्सिडी को लक्षित करना (DBT के माध्यम से)

🔵 अनावश्यक खर्चों में कटौती

5. राजस्व बढ़ाना

🔵 डिजिटल इंडिया से कर संग्रह में सुधार

🔵 नई कर योजनाएं



चुनौतियां और समाधान

चुनौतियां:

1. जनसंख्या का दबाव : बड़ी आबादी के कारण कल्याणकारी योजनाओं पर भारी खर्च

2. बेरोजगारी : आय सृजन की कमी से कर राजस्व प्रभावित

3. भ्रष्टाचार : सरकारी धन का दुरुपयोग

4. वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता : बाहरी कारक जो कर्ज को प्रभावित करते हैं

संभावित समाधान: 

1. आर्थिक विकास दर बढ़ाना : तेज विकास से कर राजस्व बढ़ेगा और कर्ज-से-GDP अनुपात कम होगा

2. कर आधार का विस्तार : अधिक लोगों को कर के दायरे में लाना

3. सार्वजनिक व्यय की गुणवत्ता : खर्च की दक्षता बढ़ाना

4. निजीकरण और PPP मॉडल : बुनियादी ढांचे में निजी निवेश को बढ़ावा

5. डिजिटल अर्थव्यवस्था : पारदर्शिता और दक्षता में सुधार



भविष्य का दृष्टिकोण 🔰

भविष्य का दृष्टिकोण


भारत के कर्ज का भविष्य कई कारकों पर निर्भर करता है:

1. आर्थिक विकास : यदि भारत 7-8% की विकास दर बनाए रखता है, तो कर्ज-से-GDP अनुपात धीरे-धीरे कम हो सकता है।

2. राजकोषीय समेकन : सरकार की राजकोषीय घाटे को कम करने की प्रतिबद्धता महत्वपूर्ण होगी।

3. संरचनात्मक सुधार : श्रम बाजार, भूमि और कृषि सुधार जरूरी हैं।

4. वैश्विक परिस्थितियां : अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक स्थिति भी भारत के कर्ज को प्रभावित करेगी।

विश्लेषकों का मानना है कि यदि सही नीतियां अपनाई जाएं, तो भारत 2030 तक अपने कर्ज-से-GDP अनुपात को 75% के आसपास ला सकता है।


निष्कर्ष ♨️

भारत का कुल कर्ज निश्चित रूप से एक चिंता का विषय है, लेकिन यह अभी भी प्रबंधनीय स्तर पर है। महत्वपूर्ण यह है कि इस कर्ज का उपयोग कैसे किया जा रहा है। यदि कर्ज का उपयोग उत्पादक संपत्तियों के निर्माण, मानव पूंजी विकास और बुनियादी ढांचे में हो रहा है, तो यह दीर्घकालिक विकास को बढ़ावा देगा।


सरकार को संतुलन बनाना होगा - एक ओर विकास के लिए खर्च करना जरूरी है, वहीं दूसरी ओर राजकोषीय अनुशासन भी आवश्यक है। जनता के रूप में, हमें भी जिम्मेदार नागरिक बनना होगा - कर चुकाना, सरकारी योजनाओं का सही उपयोग करना, और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाना।


भारत की युवा जनसंख्या, बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था और सुधारों की दिशा में कदम सकारात्मक संकेत हैं। यदि सही रणनीति अपनाई जाए, तो भारत न केवल अपने कर्ज को प्रबंधित कर सकता है, बल्कि एक मजबूत और आत्मनिर्भर अर्थव्यवस्था का निर्माण भी कर सकता है।


यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि कर्ज स्वयं में बुरा नहीं है - यह इस बात पर निर्भर करता है कि इसका उपयोग कैसे किया जाता है और इसे कैसे प्रबंधित किया जाता है। भारत के पास संसाधन, प्रतिभा और क्षमता है अपने आर्थिक भविष्य को उज्ज्वल बनाने की।


अक्टूबर 2025 तक केंद्र सरकार का कुल ऋण, मार्च 2026 के अंत के लिए अनुमानित ₹ 196.78 लाख करोड़ की ओर बढ़ रहा होगा। विदेशी ऋण के संदर्भ में, नवीनतम आधिकारिक आंकड़ा (जून 2025 तक) $747.2 बिलियन डॉलर है। 


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https://www.jugaadubook.in/2025/10/202510rbi-monetary-policy-2025-repo-rate-update.html.html?m=1


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